POEMS BY MANOJ KAYAL
घड़ी वो भी आई
दो अजनबी मिले दोस्तों की तरह
रूबरू हुए एक दूजे से
बैठे आमने सामने
सूरत उनकी तब भी नजर नही आई
हिजाब पहन रखा था
जिससे सिर्फ़ आँखे नजर आई
दोस्त बन गए
मगर खूबसूरती के दीदार को
नजरे इनायत ना हो पायी
पहचान अधूरी की अधूरी ही रह गई
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