POEMS BY MANOJ KAYAL
होती है कठपुतलियां बेजान
फिर भी इशारे पर करती है नाच
निपुण होता है वही कलाकार
जिसने जानली हो इस कला की पहचान
महारथी हो चाहे कितने भी बड़े पारंगत
अगर डाल न पाये जान बेजान कठपुतलियों में
तो सारी कला है बेकार
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