Saturday, February 27, 2010

कठपुतलियां

होती है कठपुतलियां बेजान

फिर भी इशारे पर करती है नाच

निपुण होता है वही कलाकार

जिसने जानली हो इस कला की पहचान

महारथी हो चाहे कितने भी बड़े पारंगत

अगर डाल न पाये जान बेजान कठपुतलियों में

तो सारी कला है बेकार

प्रेम सुधा

प्रेम सुधा तुम जब बरसाती हो

इन मद भरी आँखों से

बेसुध हो जाती है दुनिया सारी

देख तेरी सुनहरी हिरनी सी चंचल काया

होश खो ठहर जाती है

एक पल के लिए दुनिया सारी

पहाड़

निश्चल खड़ा पहाड़

कह रहा है पुकार

अडिग रहो करम पथ पे

ना करो अभिमान

देखो मुझको अविचलित खड़ा हु

सीना अपना ताने

चाहे आओ आंधी या तूफ़ान

डिगा ना पाये मेरा स्थान

तुम भी खड़े रहो मेरी तरह

करम पथ पे अपने

बस मत करना अभिमान

शब्दावली

सरल सहज सुगम माध्यम

को आसान होता है समझना

कठिन शब्दावली होती है थोड़ी भिन्न

समझ नहीं आये तो कर देती है अर्थ भिन्न

फेर सारी मेहनत पे पानी

व्यर्थ चली जाती है सारी मगज मारी

तोता मैना

तोते से बोली मैना

सुनलो जी मेरा कहना

हरी भरी वादियों के बीच

हो सुन्दर सी अपनी बगिया

खोलू खिड़की तो दिखे

चन्दा में तेरा ही चेहरा

तोते से बोली मैना

सुनलो जी मेरा कहना

रहे सलामत प्यार ये अपना

मिलके बुना जो सपना

सचमुच वो हो जाये अपना

तोते से बोली मैना

सुनलो जी मेरा कहना

तोते से बोली मैना

Tuesday, February 23, 2010

होली मिलन

अपूर्व है होली का मिलन

ह़र बेर भुला रंगों के रंगों में

रंग जाते है ह़र जन

चढ़ जाता है जब होली का रंग

गले लग जाते है दुश्मन भी तब

अपूर्व है होली का मिलन

आत्म मंथन

सृजन करे मंथन करे

आओ हम सब मिल आत्म मंथन करे

चले नेकी की उस राह पर

पग पग जिसमे कांटे चुभे

कठिन होगी डगर मगर

सेज मिलेगी फूलों की काँटो की राह चलके

इसीलिए क्यों ना फिर

सृजन करे मंथन करे

हम सब मिल आत्म मंथन करे

आओ मिलजुल नेकी की नई राह का सृजन करे

नींद नहीं

नींद नहीं है आँखों में जबसे

तुम मिले आके सपनों में जबसे

करवटे बदल रहे है उसी पल से

ढूंढ़ रहे है सितारों में तुम्हे उसी पल से

पलक झपकती नहीं एक पल के लिए

सपना कहीं टूट ना जाये एक पल के लिए

नींद अब बस आती नहीं उस दिन से

तेरी तस्वीर बनी इन आँखों में जिस दिन से

खुशहाली

गुजरे कल को भूल जाओ

आने वाले कल की चिंता करो

भूत से निकल भविष्य को सुमरन करो

रहना है खुशहाल तो मेरे दोस्त

वर्तमान में जीना सीखो

Saturday, February 20, 2010

होली सखी संग

सुन रे सखी री

ओ मेरी हमजोली

ना खेलो आँख मिचोली

आ खेले हम तुम होली

मच रही है धमाल

उड़ रही है गुलाल

आ रंग दे तेरे भी गाल

सुन रे सखी री

ओ मेरी हमजोली

ना करना इनकार

आ रंग ले प्यार के रंगों को

होली के रंगों के साथ

भींगे तेरी चुनर

उड़े अबीर गुलाल

सुन रे सखी री

ओ मेरी हमजोली

पिता की जरुरत

चला जिस अंगुली को पकड़

वो अंगुली छुट गई

शायद रब को चलने के लिए

मेरे पिता की जरुरत पड़ गई

तभी बिखर गई मेरी दुनिया

ठहर गए कदम

रब ही जाने उसने ऐसा क्यों कर डाला

मुझ बेबस लाचार से

मेरे बाबा ( चाचा ) का हाथ क्यों छुड़ा डाला

Friday, February 19, 2010

अक्षरों का खेल

अक्षरों का खेल है सारा

जैसे चाहो वैसे सजालो

मन माफिक शब्द बनालो

है अक्षरों का मेल अनूठा

विचित्र बड़ा ही है शब्दों का मेला

जैसे हर शब्दों का अर्थ है निराला

वैसे ही हर अर्थों की भी है अपनी कहानी

हर कहानी की है अपनी जुबानी

ओर बनते बिगड़ते कहानी जुबानी

बन जाते है कुछ शब्द अनोखे

अनोखे शब्दों के अर्थ भी होते है अजूबे

Thursday, February 18, 2010

छोटी सी मुलाक़ात

छोटी सी एक मुलाक़ात

सवालों से घिरी दास्तान

फिक्रमंद दोनों इंसान

एक गाये झूटे आलाप

दूजा कहे सच्ची बात

अन्तर है गहरा

राह नहीं आसान

इसलिए बन गई एक छोटी सी मुलाक़ात

दोस्ती की पहली और आखरी मुलाक़ात

गलतियां

गलतियां सबक बनती है

सबक इम्तिहान बनती है

इम्तिहान परख बनती है

परख दर्पण बनती है

ओर दर्पण झूट नहीं कहता है

रोशनी

थक गए नयन

राह तेरी तकते तकते

पर तुम आए नहीं

ओर बंद हो गई पलके

निहारेंगे तुम्हे कैसे

आओगी तुम जब पास

रोशनी नहीं होगी जब

इन आँखों के पास

अधूरी पहचान

घड़ी वो भी आई

दो अजनबी मिले दोस्तों की तरह

रूबरू हुए एक दूजे से

बैठे आमने सामने

सूरत उनकी तब भी नजर नही आई

हिजाब पहन रखा था

जिससे सिर्फ़ आँखे नजर आई

दोस्त बन गए

मगर खूबसूरती के दीदार को

नजरे इनायत ना हो पायी

पहचान अधूरी की अधूरी ही रह गई

Tuesday, February 16, 2010

राह गुजर

अजनबी तुम हो

अजनबी हम है

फिर ये कैसा मिलन है

पर लागी तुमसे लगन है

की है बातें अभी तक

जाना है एक दूजे को बस यहीं तलक

कशीश फिर भी है मिलन की

दीवानगी की हद तक

तस्वीर जो बनी अब तलक

शायद तुम ही वो हमसफ़र

हो अजनबी फिर भी हो राह गुजर

एक पल

सोचा ना था कभी

एक पल ऐसा भी आयेगा

अजनबी कोई दोस्त बन जायेगा

जज्बातों से खेल

दिल के टुकड़े कर जायेगा

विश्वास का क़त्ल कर

रिश्तो को मौत की नींद सुला जायेगा

सोचा ना था कभी

एक पल ऐसा भी आयेगा

सवाल

निकला था सवाल का हल ढूढ़ने

पर सवालों के जाल में उलझ

ख़ुद एक सवाल बन रह गया

उतर जिस किसीसे भी पूछा

उसने ही एक नया सवाल पूछ डाला

ओर मैं सवालों की भूल भूलैया में

ख़ुद दुनिया के लिए सवाल बन रह गया

पिता की याद

सपने जो आपने संजोये

साकार हम कर गए

पर हमें आंसुओ के साथ छोड़

आप अंतविहीन यात्रा पर

रब के पास चले गए

कमी आपकी सदा खलती है

बिन आपके कामयाबी भी अधूरी लगती है

दुआ है बस अब इतनी सी

आप के मार्ग पे चलते रहे

आशीर्वाद आपका सदा हम पे बना रहे

प्यार का भूत

बुखार प्यार की उतर गई

देखा जो उनकी आँखों में

सच्चाई पता चल गई

दिल्लगी थी दिल लगी नहीं थी

नादान हमने नादानी में

बीमार दिल को बना दिया

दिल और दिल्लगी के इस खेल में

ख़ुद को जला लिया

ऐतबार इसको किसी का ना रहा

नफरत ये ख़ुद से करने लगा

भूत प्यार का उतरने लगा

समस्या

बेताबी बडती गई

उलझाने उलझती गई

किनारा कोई नजर आया नहीं

छोटी समस्या विकराल हो गई

परिस्थिथिया बदल विषम हो गई

साधारण पहेली अनबुझ बन कर रह गई

झूठा

है जो ऊपर से नीचे तक झूठा

है जीवन जिसका झूठा

है जिसकी बुनियाद ही झूठी

वो कैसे करेगा बात सच्ची

वचन

परम्परा निभानी है

रस्म सदियों पुरानी है

आस्था बनी रहे

विश्वास टिका रहे

इसलिए सत्य पे अटल रहना है

दिया वचन निभाना है

Friday, February 12, 2010

शुभचिंतक

लगता है आज कल अपनों से कम

और अजनबियो से मुलाकाते ज्यादा होती है

तभी परिचय अपना दे पाते नहीं

संदेश भेजने में गुरेज करते नहीं

शुभचिंतक ख़ुद को कहते हो

पर नाम बताने से डरते हो

अधूरे खाब

लोट के चल दिए घर को हम अपने

समेटे यादों को दिल में

संजोये थे सपने जो

खाब अधूरे रह गए वो

हम तुम मिल नहीं पाये

दोस्त बन नहीं पाये

पर अजनबी बन दूर चले आए

ओर फ़साना बनने से पहले ही

किस्से खत्म कर आए

जज्बा

जज्बा हो दिलों में तो

कुछ कहने की जरुरत नहीं

कुछ कर गुजरने के लिए

कुछ साबित करने की जरुरत नहीं

Monday, February 8, 2010

रहस्य

लुका छिपी आँख मिचोली

कर दिया मुश्किल जीना इसने

नचा रही भूल भुलैया में

पहेली हमें बुझा रही

रहस्य क्या है समझ आया नहीं

वो कौन है जान पाये नहीं

कब उठेगा राज से परदा

शायद खुदा को भी मालूम नहीं

उत्पीड़न

नारी शौषण को देख

विचार मन में कोंधा

निष्ठुर क्यो है इतना मानव

प्रतिशोध है कैसा उसके मन समाया

जन्म दिया जिसने उसे ही बेरी क्यों बनाया

कलंकित कर दिया इस धारा ने

सारी मानव जात को

दुर्भाग्य आज तलक नारी उत्पीड़न के खिलाफ

आवाज ना कोई बुलंद कर पाया

कब होगा अंत इस पीड़ा का

कोई कह पाया नहीं


Saturday, February 6, 2010

किवदंती

तराशा ताजमहल जिन्होंने

हुनर था हाथों में उनके

प्रेम को पथरों पे उकेरा ऐसे

इबादत हो खुदा की जैसे

किवदंती जिन्दा बन गई

प्रेम कहानी अमर कर गई

परम्परा

युग युगांतर से चली आ रही जुबानी

परम्परा ये सदियों पुरानी

अखरती है दुनिया को प्रेम कहानी

रास आती नहीं उनको प्रेम दीवानी

क्योंकि उनकी नहीं कोई प्रेम कहानी

परछाई

आकृति एक नजर आई

गौर से देखा तो साया था

पूछा उससे कहा उसने

परछाई हु तेरी

संग संग तेरे चलती हु

कभी आती हु कभी जाती हु

अकेला तू है नहीं

मैं हु साथ तेरे

यह बत्ताने आती हु

Thursday, February 4, 2010

बोल

बोल बोल का फर्क है

बोल बोल का महत्व है

नहीं है जिन्दगी में ह़र चीजों का मोल

कुछ चीजें तो है अनमोल

इसलिए ह़र बोल को सोच समझ कर बोल

तोल मोल के बोल

बोल कुछ ऐसे बोल

जिसमे मिला हो अमृत का घोल

Wednesday, February 3, 2010

गोविन्द

कृष्ण मनोहर माधव गिरधारी

हरे गोविन्द हरे मुरारी

हे कलयुग अवतारी हे त्रिपुरारी

सुनले विनती हमारी कह रही सखियाँ सारी

बृज मंडल पधारो हे मौर मुकुट धारी

खेलन होली आयी राधा ले पिचकारी अपने साथ

हम रंगे तुमको प्रेम रंगों में

तुम रंगों हमको श्याम अपने रंगों में

सुनके हमारा विनम्र निवेदन

खेलन होली आ जाओ हे नाथ

कृष्ण मनोहर माधव गिरधारी

हरे गोविन्द हरे मुरारी

सब्र

पल इन्तजार के खत्म होते नहीं

ज्यौं ज्यौं समय लगे बीतने

त्यौं त्यौं इन्तजार लगे बड़ने

पल पल लगने लगे सदी समान

जितना ज्यादा इन्तजार

उतना ही ज्यादा इन्तजार

इसलिए करो सब्र से इन्तजार

मीठा लगने लगेगा इन्तजार

Tuesday, February 2, 2010

रंगों की मस्ती

आयी है रंगों की बारात

लेके आयी होली अपने साथ

कोई मारे पिचकारी कोई उड़ावे गुलाल

रंग बी रंगे रंगों में रंग गयी दुनिया सारी

हरा पीला नीला लाल गुलाबी

छा गयी रंगों की घटा निराली

बरस रही रंगों की रागिनी

खो गयी दुनिया रंगों की मस्ती में भूल सारे दुःख

हसीन शाम

लहमा लहमा कह रहा है

बूटा बूटा सुन रहा है

कितनी हसीन है ये शाम

सूरज लगने लगा है ढल

छा गयी अम्बर में लाली

चाँद नजर आने लगा

छटा बनी अनुपम निराली

ये शाम कित्नु हसीन है

लहमा लहमा कह रहा है

बूटा बूटा सुन रहा है

Monday, February 1, 2010

युवा

स्वर विरोध के उठने लगे

मुखर युवा होने लगे

शक्ति संगठित होने लगी

विद्रोह का विगुल बजने लगा

एक नयी क्रान्ति होने लगी

करके लेगें दम खात्मा आतंक का

इस जय घोष से अमन की बयार बहने लगी

शांति की सूत्रपात होने लगी

दो शब्द

कभी अपने लिए भी लिखता हु

जब कभी दिल रोता है

दो शब्द बुनता हु मैं भी

तन्हाईओं के अकेलेपन में

खुद से लड़ता हु जुड़ता हु

कोई बात दिल को छू जाये

उसे शब्दों में पिरों लिख लेता हु

अक्सर औरों के लिए लिखता हु

पर जब दिल भर आता है

दो शब्दों को अपने लिए भी लिख लेता हु

रोते रोते

रोते रोते ये पता चला

रोने को ओर आंसू बचे नहीं

उमड़ा था आंसुओ का जो सैलाब

सुखा दिया उसने सभी नदी तालाब

अब जब आंसू ही बचे नहीं

फिर किस कर के रोये

इसलिए मन ही मन रोये ताकि

आंसू की जरुरत ही होवे नहीं

कहना है बस इतना सा

दिल रोता रहे ओर आंसू नजर आये नहीं

अभिशप्त

जिन्दगी मेरे लिए अभिशप्त है

चलना इसपेमेरे लिए दुर्भर है

जीने की कोई ललक मेरी बची नहीं

फिर भी खुदा है की मेरे को मौत देता नहीं

कौल

कौल हमने लगायी तीन बार

पर उनको समझ नहीं आयी यार

जाग गया मोहला सारा

सुन शोर बौखला आया

आधी रात गए

किस गधे ने है शोर मचाया

देख ये तमाशा

जोर से मैं चिल्लाया

बीबी खोल नहीं रही दरवाजा

उसको जगाने मैं तो बजाऊंगा बेन्ड बाजा

हो रही हो तुम लोगों को तकलीफ

करलो कान बंद तुम सारी भीड़

इतने में बीबी की नींद जगी

समझ आ गया सारा माजरा

फिर पी ली है हद से ज्यादा

पकड़ बाल हमको ले गयी घर के अन्दर

ओर बंद कर दिया गुशलखाने के अन्दर

अपनी बात

होता जो कोई माध्यम पास

कह पाता अपनी बात

सहज रह सकता नहीं

भावनावों को व्यक्त कर सकता नहीं

मुश्किल तो यही है यारों

चाह कर भी अपनी बात कह पाता नहीं

कमी

कमी है मुझ में ऐसी कोई

प्यार कोई करता नहीं

नफरत के काबिल भी समझता नहीं

दोस्त कोई बने नहीं

दुश्मनों की कमी नहीं

प्रर्यत्न करू अच्छा करने की

पर होवे बिलकुल उसके उलट

इस कडवाहट से जिन्दगी बदली

आने लगी है ह़र बातों पे झंझलाहट

पर खुद में कमी की तलाश अब भी है जारी

रात ना गुजरे

चन्दा तू होले होले चल

रात इतनी जल्दी जाये ना गुजर

करले जी भर बातें प्रियतम संग हम

बस रखना तेरी चांदनी को थोडा काम

घूँघट जब सरकेगा निकलेगा मेरा भी चाँद तब

देख के उसको छिप ना जाना झट

चन्दा मेरे थोडा तो ठहर

जब तलक ना हो दीदार तब तलक तो ठहर

मिलन के इस पल का तू गवाह तो बन

चन्दा तू होले होले चल

ये रात इतनी जल्दी जाये ना गुजर