POEMS BY MANOJ KAYAL
किसको किसकी खबर है
सारा जहां बेखबर है
मतलबी है दुनिया
रिश्ते नाते है छलावा
सबको बस अपनी ही लगी है
फुर्सत नहीं है किसीको
मिलने मिलाने की
याद आती फिर नहीं
मुराद जब हो जाए पूरी
किसीको किसीकी खबर ही नहीं
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