Thursday, January 14, 2010

आघात

रक्तिम रक्तिम रक्त बहे

लहुलुहान शहर दिखे

गूंज रहा है कोलाहल

हर ओर मची है पुकार

फैले पड़े है लाशों के अम्बार

किसी दहशतगर्द ने फिर से

लिख दिया काला अध्याय

इंसानों के शहर को बना दिया शमशानघाट

देख इस भयावह मंजर को काँप उठा इंसान

मन कह उठा चीत्कार

खुद को कहना मनुष्य है अभिशाप

खो गई चेतना शून्य में

मानवता को दे गई जबरदस्त आघात

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