रक्तिम रक्तिम रक्त बहे
लहुलुहान शहर दिखे
गूंज रहा है कोलाहल
हर ओर मची है पुकार
फैले पड़े है लाशों के अम्बार
किसी दहशतगर्द ने फिर से
लिख दिया काला अध्याय
इंसानों के शहर को बना दिया शमशानघाट
देख इस भयावह मंजर को काँप उठा इंसान
मन कह उठा चीत्कार
खुद को कहना मनुष्य है अभिशाप
खो गई चेतना शून्य में
मानवता को दे गई जबरदस्त आघात
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