POEMS BY MANOJ KAYAL
सृष्टि कहे पुकार
मानव निंद्रा से तू अब जाग
टटोल खुद को
खगोल ब्रह्माण्ड को
पपोल धरा को
इनमे छिपे गुणों की कर पहचान
अंकुरित हो सके
नव विज्ञान का आधार
छिपे रहस्यों के खुल जाए राज
नये संसार की कल्पना का
सपना हो जाए साकार
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