डर खौंफ भय आतंक
दुर्भर है जीना इनके बीच
जीना है तो सीखना है
इनसे मुकाबला करना है
उत्पन कोई कु विकार हो ना पाये
माहोल ना बदले ना जाये
परिस्थिथि बिगड़ ना पावे
रखना होगा मन मस्तिष्क को जोड़
वर्ना मुश्किल होगी खुशियों की खोज
ओर फिर जीना पड़ेगा
डर खौंफ भय आतंक के साये ही
No comments:
Post a Comment