Saturday, January 30, 2010

दुर्भर

डर खौंफ भय आतंक

दुर्भर है जीना इनके बीच

जीना है तो सीखना है

इनसे मुकाबला करना है

उत्पन कोई कु विकार हो ना पाये

माहोल ना बदले ना जाये

परिस्थिथि बिगड़ ना पावे

रखना होगा मन मस्तिष्क को जोड़

वर्ना मुश्किल होगी खुशियों की खोज

ओर फिर जीना पड़ेगा

डर खौंफ भय आतंक के साये ही

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