POEMS BY MANOJ KAYAL
बने साधू संत अनेक
रचे गए ग्रन्थ अनेक
पर समझा ना सके
इनका मर्मरग्य कोई एक
खो गई वो ओजस्व वाणी
भूल गए गीता उपदेश
फ़ैल गए पाखंड के दानव
नजर आ रहे है सिर्फ़ आडम्बर ही आडम्बर
बाँट रहे है अंधविश्वास और वहम के प्रसाद
पढ़ा रहे है ज्ञान की जगह अज्ञान के पाठ
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