POEMS BY MANOJ KAYAL
ब्रह्माण्ड है विशाल धरा है महान
प्रकृति की कण कण में विराजे जीवन हजार
पग पग बिखरा पड़ा है सौन्दर्य रूप अपार
निज स्वार्थ मानव कर रहा है सृष्टि का विनाश
कैसे समझाए इस समझदार प्राणी को
जब नहीं बचेगी धरती तो कैसे बचेगा ब्रह्माण्ड
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