POEMS BY MANOJ KAYAL
उन्मुक्त हो उडू गगन में
ना कोई बंधन ना जात हो
परिंदे की तरह विचरू नील गगन में
स्वछंद हो फिरू मस्ती में
सम्भोग से समाधी तक
जी भर जिऊ हर पल को
मुक्त रह जी लू प्रकृति ने दिए उस पल को
उन्मुक्त हो उड़ता फिरू गगन में
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