RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Saturday, January 23, 2010
पछ्ताताप
यूँ लगता है कुछ ज्यदा ही मशगुल हो गैरों के लिए
तभी लापरवाह हो अपनों के लिए
मशगुल इतने भी ना होवो की
जरुरत हो जब तब कोई नजर ना आये
ओर पछ्ताताप की अग्नि में मन जल जाए
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