POEMS BY MANOJ KAYAL
स्वर विरोध के उठने लगे
मुखर युवा होने लगे
शक्ति संगठित होने लगी
विद्रोह का विगुल बजने लगा
एक नयी क्रान्ति होने लगी
करके लेगें दम खात्मा आतंक का
इस जय घोष से अमन की बयार बहने लगी
शांति की सूत्रपात होने लगी
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