POEMS BY MANOJ KAYAL
कर रही सुबह का इन्तजार
कब हो उजाला ओर छट जाये अन्धकार
लड़ने अन्धकार से चाहिए एक हथियार
दीपक एक काफी नहीं
इसलिए कर रहा सूर्य का इन्तजार
ताकि इसकी रोशनी में गुम हो जाये अन्धकार सारा
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