POEMS BY MANOJ KAYAL
क्यो हु मैं इतना बदकिस्मत
कोशिश जी जान से करू
कमी रखु न कोई ना कोई कसर
फिर हर बार क्यो मिले असफलता
कुदरत ने शायद तक़दीर में कामयाबी लिखी नही
कामना सफलता की इसलिए काम ना आए
इस गहरी चोट को जुबां से वयां किया जा ना सके
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