Monday, December 14, 2009

चीत्कार

सुनके बेबस चीत्कार

जिन्दगी सिहरन उठी

मानसिक यातना दे

अच्छे भले को भी रोगी बना दिया

देख मन विचलित हो गया

पुकारा रब को पूछा

कहाँ छिपे बैठे हो

चीत्कार तुम्हे सुनाई क्यो नहीं देती

क्यो मदद को आ नहीं रहे आज

सुनके ललकार रब दौड़े चले आए भक्त के पास

रख सर पे हाथ मिटाए सारे संताप

No comments:

Post a Comment