सुनके बेबस चीत्कार
जिन्दगी सिहरन उठी
मानसिक यातना दे
अच्छे भले को भी रोगी बना दिया
देख मन विचलित हो गया
पुकारा रब को पूछा
कहाँ छिपे बैठे हो
चीत्कार तुम्हे सुनाई क्यो नहीं देती
क्यो मदद को आ नहीं रहे आज
सुनके ललकार रब दौड़े चले आए भक्त के पास
रख सर पे हाथ मिटाए सारे संताप
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