Wednesday, December 23, 2009

प्रभात

कर रहा हु इन्तजार

ढल रहा है दिन हो रही है शाम

होगा भाग्य उदय कल तो

कह रहा है मन ये बार बार

किया नहीं जब कोई अनुचित काम

निश्चय ही रब देगा मेरा साथ

निराश अभी हुआ नहीं

फैलाये बाहे कर रहा हु

एक नए प्रभात का इन्तजार

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