Friday, November 20, 2009

पूंजीवाद

जब से पड़ी पूंजीवाद की साया

उपभोक्ता बाजार चला आया

आधुनिकता की होड़ मची

बदल गई जीने की तस्वीर

दौलत हो या ना हो

सब हाज़िर हैं फिर भी सब किस्तों मैं

किस्ते बनने लगी जी का जंजाल

आमदनी अठ्नी खर्चे बेहिसाब

किस्त चुकाने लेने पड़े किस्त उधार

वाह रे वाह पूंजीवाद

गुजर गई जिंदगानी चुकाते चुकाते किस्तिया

जो कल तक लग रही थी आसान

समझ नहीं सका मानव पूंजीवाद की फांसिवाद

जय हो पूंजीवाद

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