जब से पड़ी पूंजीवाद की साया
उपभोक्ता बाजार चला आया
आधुनिकता की होड़ मची
बदल गई जीने की तस्वीर
दौलत हो या ना हो
सब हाज़िर हैं फिर भी सब किस्तों मैं
किस्ते बनने लगी जी का जंजाल
आमदनी अठ्नी खर्चे बेहिसाब
किस्त चुकाने लेने पड़े किस्त उधार
वाह रे वाह पूंजीवाद
गुजर गई जिंदगानी चुकाते चुकाते किस्तिया
जो कल तक लग रही थी आसान
समझ नहीं सका मानव पूंजीवाद की फांसिवाद
जय हो पूंजीवाद
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