Thursday, November 12, 2009

मायूसी

क्या सचमुच मैं इतना बुरा हु

जो किस्मत हर बार दगा दे जाती है

मंजिल पास आ फिर दूर चली जाती है

सपने बिखर जाते है

मायूसी चहरे पे छा जाती है

रब भी मेरी प्रार्थना काबुल नहीं करता

शर्मिंदगी फिर सब के आगे उठानी पड़ती है

ब्यथा मेरी है आंसुओ में लिपटी

लाचारी एसी रो भी ना सकू

पीडा अपनी किसी को बया भी ना कर सकू

शायद मैं सबसे बुरा हु इसीलिए

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