POEMS BY MANOJ KAYAL
साहिलों से टकराकर मौजे वापस लोट आई
उठी जो ऊँची लहर कस्ती डूबा गई
शांत हुई जब लहरे
कस्ती भी पहचान न आई
लुट गई किस्मत
बह गई जिन्दगी
रह गई सिर्फ़ गमों की बस्ती
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