POEMS BY MANOJ KAYAL
जिन्दगी शतरंज की विछात है
हम तो सिर्फ़ मोहरे है
शह और मात के इस खेल में
हार हमारी ही होनी है
बागडोर उपरवाले ने थाम रखी है
चाल उसने ही चलनी है
हमने तो मूकदर्शक
बस जिन्दगी जीते जानी है
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