Saturday, November 14, 2009

फिक्रमंद

फिक्रमंद हु कल्पना भविष्य की करके

बादल रही है पल पल ये घड़ी

बयार बदलाव की जो चली

सारे आज को बादल गई

फिक्र ना फिर कैसे करू

सोच सोच भविष्य के बारे में डरा करू

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