POEMS BY MANOJ KAYAL
फिक्रमंद हु कल्पना भविष्य की करके
बादल रही है पल पल ये घड़ी
बयार बदलाव की जो चली
सारे आज को बादल गई
फिक्र ना फिर कैसे करू
सोच सोच भविष्य के बारे में डरा करू
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