POEMS BY MANOJ KAYAL
हे मानव निंद्रा से जागो
जीवन सार को पहचानो
गीता उपदेश को जानो
सब कुछ यही रह जाना है
फिर क्यो करो भेद भाव
आओ मिलके रहे अमन के साथ
जो बदलनी किस्मत धरा की आज
तो मानव अब तू निंद्रा से जाग
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