POEMS BY MANOJ KAYAL
कैसी अजब माया कैसा अजब खेल निराला
दोस्त है मगर गिनती दुश्मनों में ज्यादा है
प्यार है मगर नफरत उससे भी ज्यादा है
चाहे किसी ओर को ये भी उनको मंजूर नही
दूर एक दूजे से रहे ये भी मंजूर नही
ये कैसा प्यार है कैसा अपनापन है
हमको मालूम नही
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