Monday, November 30, 2009

साजिश

सहमी सहमी सी रहती है दुनिया

हर तरफ़ खौफं नजर आती है

आलम दहशत का ऐसा है

हर ओर मौत नजर आती है

सन्नाटे में हवा भी

डर का मंजर बना जाती है

अंधेरे में जुगनू की रोशनी भी

एक साजिश नजर आती है

भयावह मंजर

अपने मुकाम से जो नजर उठा कर देखोगे

हर ओर लाशों के अम्बार नजर आयेंगे

आतंक से तार तार हुई जिन्दगी नजर आयेगी

छिन्न भिन्न हुई संस्कृति नजर आयेगी

देख इस भयावह मंजर को खुदा की याद आयेगी

कैसे कटेगी जिन्दगी लाशों के बीच

यह बात समझ नहीं आयेगी

जिन्दगी ख़ुद एक जिन्दा लाश बन रह जायेगी

मूकदर्शक

जिन्दगी शतरंज की विछात है

हम तो सिर्फ़ मोहरे है

शह और मात के इस खेल में

हार हमारी ही होनी है

बागडोर उपरवाले ने थाम रखी है

चाल उसने ही चलनी है

हमने तो मूकदर्शक

बस जिन्दगी जीते जानी है

जय भारत

सुनलो वो दुनिया वालो

हम है हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्ता बसे हमारे दिलो में

नही कोई हमारा सानी

अमन चैन हमारा छिनने की कोशिश न करना

टुकड़े हमारे दिलो के करने की साजिश न रचना

नामोनिशा तुम्हारा मिटा देंगे

माटी में तुमको मिला देंगे

भाषा अनेक फिर भी बोले एक ही बोली

जय भारत जय भारती

स्वाभाव

अच्छी शिक्षा उंच विचार

मजबूत बुनियाद के आधार

बिन कठिन परिश्रम

ये डगर नहीं आसान

अच्छा इंसा बनना हो

संकल्प ये करे

कार्य न कुछ ऐसा करे

दरार बुनियाद में आ जाय

सर शर्म से झुक जाय

आप का स्वाभाव ही

आप का परिचय

तो क्यो ना सत्य मार्ग पर चला जाय

आखरी ख़त

सज गई डोली आ गये बाराती

अब तो पढ़ लो मेरा आखरी ख़त

फेरे पड़ जाय किसी ओर संग

उससे पहले भरले मांग मेरे नाम की

बिदा हो गई जो किसी ओर के साथ

जीवन भर पछताओगी अजनबी को गले लगा

पढ़ ले तू ये ख़त आखरी

पगली कब समझ आयेगी ये दीवानगी

डाल के वरमाला मेरे गले

चल पड़ तू मेरे साथ ही

थामने तेरा हाथ

खड़ा हु तेरे पास ही

बस एक बार पढ़ ले तू ख़त आखरी

अहमियत

अहमियत होती है हर छोटी छोटी बातों की

कब कौन सी बात महत्वपूर्ण हो जाय

यकीन विश्वास में बदल जाय

ये कोई नहीं जानता

नाज करो मगरूर ना बनो

इंसा हो इंसा ही रहो खुदा ना बनो

ये सबक सदा याद रखो

बहन भाई

बहन भाई का नाता

जनम जन्मान्तर का ये नाता

सबसे पवित्र ये नाता

राखी की डोर से बंधा नाता

टूट नहीं सकता ये नाता

धागे से बंधी है इस रिश्ते की नाल

स्नेह से बंधी है इस रिश्ते की आंच

ऐसा सुंदर है भाई बहन का दुलार




Saturday, November 28, 2009

वो रात

कैसी वो रात होगी

तुम मेरे साथ होगी

तारो की बारात होगी

नाचती झूमती पवन की बयार होगी

कैसी हसीन वो रात होगी

सिर्फ़ तेरी मेरी बात होगी

तेरे मर्म स्पर्शी आगोस में रात होगी

कितनी प्यारी वो मिलन भरी रात होगी

कैसी वो रात होगी

नजर ना लग

आप के पैरो की नुपुर छम छम कर जब बजे

मेघा रानी छम छमा छम बरसे

माथे की बिंदिया जब चमके

आफ़ताब की आभा की खूब दमके

हाथो का कंगना जब खनके

कोयल लगे गीत सुनाने

चेहरा जो घूँघट में छिप जाए

आसमा में चाँद भी नजर ना आए

ये हुजुर आपके हुस्न को

कहीं हमारी नजर ना लग जाए

बात

अभी अभी बात चली है

बात के साथ बात चली है

इस बात में बात जुड़ी है

बात से बात भड़ी है

जितने मुहँ उतनी बात बनी है

बात बात का फेर है

कोई समझे इशारो में बात

कोई ना समझे कहने से भी बात

बात बड़ी गंभीर है

इससे बड़ी और क्या बात है

जीवन में बातों का ही तो साथ है

यही सबसे अच्छी बात है

लहर

साहिलों से टकराकर मौजे वापस लोट आई

उठी जो ऊँची लहर कस्ती डूबा गई

शांत हुई जब लहरे

कस्ती भी पहचान न आई

लुट गई किस्मत

बह गई जिन्दगी

रह गई सिर्फ़ गमों की बस्ती

Friday, November 27, 2009

एक नार

स्वच्छ निर्मल पावन

कांति आभा तर्पण

कोमल मनोहर नयन

फूलो का दर्पण

सुंदर सोम्य संयम

बेजोड़ है संगम

ऐसी चाहिए एक नार

जो बदल दे मेरा जीवन

भर दे सुखो से संसार

दिल की चोर

ढूंडी मंजिले बहुत

तलाशी राहें अनेक

सब आकर थमी

तेरे ही आगे

क्यो कुदरत चाहती है

तेरा मेरा साथ

क्यो ठहर जाते है कदम

आके तेरे ही पास

क्या है जो बाँध रही

तेरी मेरी डोर

क्या तू ही है

मेरे दिल की चोर

Thursday, November 26, 2009

बरबस

खोके तुम्हे ये अहसास हुआ

दर्द जुदाई का क्या होता है

ये मुझको अहसास हुआ

बरबस ही दिल रो पड़ता है

तुमको कभी ना भूल सकता है

पास रहे तब कदर ना जानी

छोड़ चले गए तब ये समझ आई

नादानी हमसे हुई

तेरे सच्चे प्यार का पहचान ना सके

शकुन्तलम

सुन्दरम नयनाभिरामं

कोमलांगम मधुरं

ओ मेरी प्रियतम

खुदा भी कहे तुम हो मन मोहनं

ओ शकुन्तलम प्रियतम

तुम ही हो प्रिय बांधवं

तुम ही सबसे सुन्दरम

ओ मेरी प्रियतम

सुन्दरम नयनाभिरामं

कोमलांगम मधुरं

ओ मेरी प्रियतम

बेरहम

अगर समझ जाते सचाई

तो खुदा ना बन जाते

पी लेते अमरत्व

तो अमर ना हो जाते

जो पा लेते तुझे

तो मंजनू ना बन जाते

मिल गया होता प्यार यदि

तो बेरहम ना कहलाते

Wednesday, November 25, 2009

गमों का सागर

गमों का सागर इतना गहरा

लहर उठी ऊँची ऊँची

फंस गई नैया बीच भवर में

दुखो का पहाड़ इतना ऊँचा

राह न कोई नजर आई

टूट गई जिन्दगी

भर आई आँखे

जीने की अब कोई चाह न रही

सौतन

सौतन का पता हम को चल गया

ख़त से पता उनका मिल गया

लाख छिपाओ मगर हमको पता चल गया

छुप छुप मिलने का राज खुल गया

तस्वीरों में उनका चेहरा मिल गया

बाकी अब कुछ ना बचा

जो था वो फ़ोन से खुल गया

कल्पना की उड़ान

कल्पना की उड़ान स्वछंद हो

ना किसी से तकरार हो

ना विचारो का टकराव हो

मुक्त गगन उड़े ऊँची उड़ान हो

सुंदर स्वप्निल कल्पना साकार हो

प्यार बसे जिसमे सबका

वो सपना साकार हो

बचपन

वो माटीके पुतले वो मट्टी के खिलौने

वो बचपन की यादे वो लड़कपन की बातें

टूटते खिलौने बरसते आंसू

वो बेजान पुतले वो मट्टी के खिलौने

लगते सबसे अज़ीज़ वो खिलौने

छुले कोई तो लड़ना झगड़ना

वो रोना वो रोते रोते हँसना

वो माटी के खिलौने

जिनके संग बचपन गुजरा

देखू जब भी माटी के खिलौने

याद आ जाए बचपन दुबारा

Tuesday, November 24, 2009

जन्नत

बात क्यो ना फिर खास हो

जब तुम मेरे साथ हो

सुन तेरी प्यार भरी बात

लगने लगी दुनिया हसीन

अहसास क्यो ना फिर खास हो

जब आँचल में लिपटा प्यार हो

पा के तेरी आगोश क्यो ना फिर

दुनिया जन्नत से हसीन हो

हमदर्द

कुछ अनछुए पहलु दिल को छु जाते है

जज्बात आंसू बन निकल आते है

भावनाओ का समंदर सैलाब बन उमड़ आता है

इस एक पल को अजनबी भी अपना नजर आता है

मीठे बोल जो बोलले वो हमदर्द नजर आता है

Monday, November 23, 2009

प्रेयसी

ओ हो प्रेयसी तेरी मेरी दोस्ती

बनके बर्षा बहार छायी

एक नई रोशनी नजर आई

सबसे जुदा ये तेरी मेरी दोस्ती

खो ना जाए हम कहीं

टूट ना जाए ये दोस्ती

आ तलाशे तेरी मेरी दोस्ती

कह रही है फिजा

रंग लाने लगी है हीना

बहने लगी है हवा

देख तेरी मेरी दोस्ती

प्रेयसी ओ प्रेयसी

तेरी मेरी ये दोस्ती

कलमा

कलमा मोह्बत का लिखा

ख़त तेरे नाम लिखा

दिल की भाषा में पैगाम लिखा

करते है तुमसे मोह्बत

ये पयाम तेरे नाम लिखा

ख़त तेरे नाम लिखा

कैसे कहू

कहना जो चाहू वो कह नही पाऊ

कैसे मैं तुम को बताऊ

क्यो मैं तुम को चाहू

ओ यारा दिलदारा

दिल तेरे हाथो हारा है

आजा गले मुझे लगा जा

मेरे प्यार को मांग में सजाजा

दामन प्यार के फूलो से महका जा

ओ यारा दिलदारा

कहना जो था वो है मैंने कह दिया

तुझको है रब का वास्ता

मेरे को अपना बनाजा

ओ यारा दिलदारा

कुंजी

हसरते प्रेरणा बन जाती है

जब ख्वाईसे अधूरी रह जाती है

जूनून कर गुजरने की संजीवनी बन जाती है

जब हर बार असफलता हाथ आती है

बुलंदियों को छु लेने की तम्मना पूरी हो जाती है

जब कामयाबी की कुंजी हाथ आ जाती है

वादा

वादा तुझसे किया उसको निभाना है

तुझको ओर ना रुलाऊ

ओर ना तुझको सताऊ

ऐसा मुझको बन जाना है

प्यार किया तुझसे उसको भी निभाना है

तेरी खातिर कुछ भी कर जाना है

जो वादा किया उसको निभाना है

तारे

तारों ने सिखलाया

बुझे चिराग को जगमगाया

आसमां में रहो सदा

जगमगाओ धुर्व की तरह

करके रोशन जहाँ

करलो दुनिया मुठी में

देखने तेरा स्थान

करने तुम्हे प्रणाम

दुनिया हो जाए बेत्ताब

करलो कुछ पुण्य का काम

Saturday, November 21, 2009

पगडंडिया

पगडंडियों पे चलते गए

लघुतम मार्ग खोजते गए

झुरमुठो को झाडियों को

रोंद आगे बड़ते गए

जूनून इस कदर हावी था

सफलता पाने का

कदम ख़ुद व् ख़ुद बड़ते गए

मंजिल तो नसीब ना हुई

भूल भुलैया खो जरुर गए

वो रात

सफर खत्म हो चला रात गुजर गई

बीते लहमे याद बन दिलो में बस गए

नींद अब आती नहीं

पलके एक पल के लिए भी झुकती नहीं

तस्वीर वो आँखों के सामने से हटती नहीं

बिन उनके नींद अब आती नहीं

बीती रात भूली जाती नहीं

उनके बैगर अब रात गुजर पाती नहीं

Friday, November 20, 2009

पूंजीवाद

जब से पड़ी पूंजीवाद की साया

उपभोक्ता बाजार चला आया

आधुनिकता की होड़ मची

बदल गई जीने की तस्वीर

दौलत हो या ना हो

सब हाज़िर हैं फिर भी सब किस्तों मैं

किस्ते बनने लगी जी का जंजाल

आमदनी अठ्नी खर्चे बेहिसाब

किस्त चुकाने लेने पड़े किस्त उधार

वाह रे वाह पूंजीवाद

गुजर गई जिंदगानी चुकाते चुकाते किस्तिया

जो कल तक लग रही थी आसान

समझ नहीं सका मानव पूंजीवाद की फांसिवाद

जय हो पूंजीवाद

तेरा मेरा साथ

रोमं रोमं में बसा हैं तेरा ही नाम

इस काया में दिखे तू ही सुबह शाम

नस नस में बनके लहू बहे तेरा ही प्यार

हर धड़कन हर साँसे तेरे ही नाम

हृदय समायी हो बनके मेरी ही पहचान

सात जन्मो तक बना रहे तेरा मेरा साथ

Tuesday, November 17, 2009

चाँदनी रात

लो फिर चली आई वो चाँदनी रात

हम तुम तुम हम बैठे डाले हाथो में हाथ

बिन मिलन गुजर ना जावे ये हसीन रात

चंदा चमके बनके तेरे माथे की बिंदिया है आज

लो फिर चली आई वो चाँदनी रात

आओ एक दूजे की आँखों में करे चाँद का दीदार

पुरा है चाँद छटक रही चाँदनी

दमक रही बन के प्यार

आओ खो जाए एक दूजे में

गुजर ना जाए ये रात

लो फिर चली आई वो चाँदनी रात

योद्धा

समर भूमि का जो वर्णन आया

सुन के मन रोमांचित हो आया

कैसा रहा होगा वो समर

जब होती थी आर पार की लड़ाई

अस्व पे होके सवार

लेके हाथ भाल और तीर कमान

वीर चल पड़ते थे करने न्योछावर प्राण

सचमुच वो थे योद्धा महान

सुन के वीरो का बलिदान

मन में आए उत्तम विचार

जल और अग्नि

रिश्ता जल और अग्नि का

एक दूजे के पूरक रिश्ता

एक जलाये दूजा आग बुझाये

बिन इनके नहीं सृष्टि सम्भव

चाहे तो दोनों विनाश का कहर वरपा दे

चाहे तो वरदान के फूल खिला दे

रिश्ता जल और अग्नि का

एक दूजे के पूरक रिश्ता

Monday, November 16, 2009

मधुशाला की पुकार

मधुशाला कहे कभी मेरे घर भी आओ

मधुरस एक घुट अपने नाम कर जाओ

भूल जाओगे सारे गम

जो मेरी आगोश में आ जाओगे

वादा रहा ये मेरा तेरे साथ

जो किया मेरा रसपान

दूर ना मुझसे कभी रह पाओगे

भूल के दुनिया सारी

मेरे घर रहने चले आओगे

पुकार पुकार कहे मधुशाला

कभी मेरे दर पे भी तो आओ

Saturday, November 14, 2009

लिखना

फिर कुछ कहोगे तो कुछ लिखूंगा

कुछ ना कहोगे तो भी लिखूंगा

लिखना छोड़ सकता नहीं

जज्बातों से नाता तोड़ सकता नहीं

एक यही तो हमदम है

जिसके सहारे जिन्दा हु

कहनी होती है जब भावनावो से भरी दिल की बात

एक इसी का तो होता है साथ

फिर कैसे छोड़ दू इसका साथ

फिक्रमंद

फिक्रमंद हु कल्पना भविष्य की करके

बादल रही है पल पल ये घड़ी

बयार बदलाव की जो चली

सारे आज को बादल गई

फिक्र ना फिर कैसे करू

सोच सोच भविष्य के बारे में डरा करू

Friday, November 13, 2009

एकता

एक सूत्र में बंधे रिश्ते

लगे पिरोई हो भिन भिन फूलो की माला जैसे

जब बंधे हो सब एक सूत्र से

तो कहलाये ये अटूट रिश्ते

खुली हो अंगुली तो हाथ बने

बंद हो तो मुक्का कहलाये

एक एक कर जो आपस में जुड़ जाय

कोई ताकत उसने ना तोड़ पाय

प्यार में ही एकता

सूत्र का मंत्र जो समझ जाय

फिर ना जीवन में वो कभी हार पाय

कौन

बड़ी मतलबी है ये दुनिया

निकलना हो जब कोई काम

याद आ जाती है पुरानी पहचान

मान न मान मैं तेरा मेहमान

वक्त का तकाजा है यही

गधे को भी बाप बनाना है सही

निकल जाए जो काम

भूल जाए सारी पहचान

हद हो जावे बेशर्मी की तब

मुलाक़ात हो जावे अनजाने में जब

पूछे कौन हो महाशय आप

क्यो पड़ रहे हो गले आके मेरे

नहीं करता बात चित

अनजानों अपरिचितों से आज कल

समझ आ गई होगी मेरी बात अब तो आप को

Thursday, November 12, 2009

बदकिस्मत इंसान

मैंने रब से मेरी तक़दीर के बारे में जो पूछा

कहा उसने ख़राब है तकदीर तेरी

बड़ा ही बदकिस्मत इंसान है तू

अभागे हाथो में लकीर ही नहीं है तेरे

किस्मत की तो छोड़

हक़ नहीं है जीने का भी तुझे पगले

मायूसी

क्या सचमुच मैं इतना बुरा हु

जो किस्मत हर बार दगा दे जाती है

मंजिल पास आ फिर दूर चली जाती है

सपने बिखर जाते है

मायूसी चहरे पे छा जाती है

रब भी मेरी प्रार्थना काबुल नहीं करता

शर्मिंदगी फिर सब के आगे उठानी पड़ती है

ब्यथा मेरी है आंसुओ में लिपटी

लाचारी एसी रो भी ना सकू

पीडा अपनी किसी को बया भी ना कर सकू

शायद मैं सबसे बुरा हु इसीलिए

जल

जल बिन जीवन नहीं

जीवन बिना अर्थ नहीं

अर्थ बिना सृष्टि नहीं

सृष्टि बिना जल नहीं

जल है वरदान

ना खेलो सृष्टि के साथ

कही बन ना जाए वरदान अभिशाप

प्यार का दर्द

ढाई कोश चले एक पहर में

एक सदी लगी ढाई आखर का अर्थ समझने

कथा ये विचत्र पर निराली है

अजब प्रेम की गजब कहानी है

साथ रहे जीवन भर

पर समझ ना पाए प्यार का दर्द

अंत समय आया तो

दिल को ये ख्याल आया

अब तो कह दू

प्रेम हमें तुमसे ही है

इस्तकबाल

पहले तुम ताजमहल लगती थी

अब खंडहर दिखती हो

उम्र हावी होने लगी

बुनियाद कमजोर होने लगी

स्वरुप तुम अपना खोने लगी

झुरिया चहरे पे छाने लगी

तू मौत को इस्तकबाल करने लगी

दिलवाले

जली शमा परवानो के लिए

खिली कलिया भवरो के लिए

बने अफसाने फसानो के लिए

गुलशन हुआ चमन प्यार के लिए

बनी मोह्बत दिलवालों के लिए

परछाई

ना जाने क्यो पर चला जा रहा हु


अनजानी मंजिल की ओर


ना पहुँच सके तेरी परछाई जहाँ किसी रोज


वादा जो किया जाने का


आ गया वक्त उसे निभाने का


दिल को है समझाया


उनकी खुशियों की खातिर है जाना


प्यार है खुदा की निमत


कैसे किया वादा मैं तोड़ दू

फर्क

फर्क इतना है

तुने किसी ओर के शब्दों का सहारा लिया

हमने अपने शब्दों का

तुने दुसरे की भावनाओं को अपनी अभिब्येक्ती बनाया

हमने अपनी भावनाओं को उज्जागर किया

अन्तर ये बहुत बड़ा है

फासला बहुत ज्यादा है

इसलिए फर्क लाजमी है

मकबरा

कल किसी ने पूछा क्या कल भी मेरा हाथ थामे रहोगे

मेरे मरने के बाद मेरा मकबरा बनवाओगे

हँस कर हमने कहा

भविष्य को छोडो वर्तमान की बात करो

बात मकबरे की कर रहे हो

देख सामने ताजमहल फिर क्यो घबरा रहे हो

तलाक

ठीक कहा तुने साथ अब अपना निभ सकता नहीं

मजबूरन ढोने पड़े उन रिश्तो की जरुरत नहीं

यार गाड़ी ऐसे चल सकती नहीं

तलाक से अच्छा सुझाब नहीं

तेरा नाम

अक्स तेरा दिल में बनाया था

मोह्बत ये मल्लिका तुझको बनाया था

सपनो के उड़नखटोले से उत्तार दिल में बसाया था

साहिलों में डूब ना जाओ नजरो में समाया था

रेत पे लिखे नाम की तरह ना मिट जाओ

इसलिए तेरा नाम अपने सीने पे खुदवाया था

फिक्र

क्यो ढूंढे उन्हें जिन्हें हमारी फिक्र नहीं

रेत पे उनका अक्स बना निहारते रहे

इसका अर्थ ये नहीं

उनके बिना हम जी सकते नहीं

साहिलों से टकरा प्यार की कश्ती जो डूब गई

इसका मतलब ये नहीं मोह्बत हमारी मर गई

Monday, November 9, 2009

मेरे दिल की परी

बेगाना हो भटकू गली गली

खोजू प्यार हर कलि कलि

मिली ना कोई सुंदर कलि

कह सकू जिससे बात प्यार भरी

भटक रहा हु गली गली

कहीं तो मिलेगी मुझको भी

मेरे दिल की परी

संग जिसके होगी मेरी डोर बंधी

क्यो ना खोजू अपनी प्रेम दीवानी गली गली

पागल पवन

ओ री पवन सुन री पवन

ओ री पागल पवन

बरसी जो घटा बनके शीतल चुभन

उड़ने लगी खाबो की उड़न

बरसने लगी उमंगो की तरंग

ओ री पवन सुन री पवन

ओ री पागल पवन

बदलने लगा आसमा का रंग

छाने लगी मेघो की छम छम

गाने लगी कोयल गीतों बहार

उठने लगी मन में उमंगें हज़ार

झुमने लगा दिल ये बार बार

ओ री पवन सुन री पवन

ओ री पागल पवन

समझ

बोल के समझाया

कर के दिखलाया

इशारो से बतलाया

पर उनकी समझ कुछ भी ना आया

किस मिटटी का बना है ये इंसान

जानते समझते हुए ना समझ बन रहा है

समझ में ना आई ये बात

जो कहा भेंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा

हँस कर उसने कहा

अदा तुम्हारी दिल को भा रही थी

तरीका समझाने का अच्छा लग रहा था

इशारे मन को लुभा रहे थे

तुम पास रहो इसलिए ना समझ बन रहा था

विनम्र निवेदन

हे ईश्वर इतनी शक्ति मुझको दे दो

पिता को दिया वचन पूरा कर पाऊ

थोडी कृपा मुझ पर भी कर दो

क्रोध मेरा भी हर लो

बहुत लुटाया क्रोध में

अब ना ओर कोई अनिष्ट हो

मेरे परिवार के लिए मुझको संभाल लो

बोली कर दो शहद सी मीठी

गुस्सा गाली कर दो काफूर

ना देवे दुआ कोई बात नहीं

किसीकी बददुआ क्यो मैं लू

इसलिए हे ईश्वर सुन कर मेरा भी विनम्र निवेदन

मदद मेरी कर दो आज

पिता को दिए वचन की रह जावे लाज

ऐसा आर्शीवाद मुझको भी दे दो आज

Saturday, November 7, 2009

निंद्रा

हे मानव निंद्रा से जागो

जीवन सार को पहचानो

गीता उपदेश को जानो

सब कुछ यही रह जाना है

फिर क्यो करो भेद भाव

आओ मिलके रहे अमन के साथ

जो बदलनी किस्मत धरा की आज

तो मानव अब तू निंद्रा से जाग

साँसों की डोर

रुक रही साँसों को थाम लो

हो ना जाए देर इससे पहले

मेरे नाम की मांग सजालो

बिन तेरे कुछ भी नहीं

कैसे तेरे बिन जिया जाऊ

इन साँसों की डोर बंधी है

तेरी साँसों की डोर से

हो ना जाए देर कही

आके मेरा हाथ थाम लो

Wednesday, November 4, 2009

पाठ

खोली जो किताब चक्कराने लगा सर

देख के पाठ मुख से निकल पड़ा

इतना बड़ा पाठ हो नही सकता मुझसे याद

सुनते ही इतना मास्टरजी बोले

बच्चे जरा खड़े हो जाओ

मुर्गा बन सब को दिखलाओ

जब हो सकते है बेहुदे गाने याद

तो क्यो नही हो सकता पाठ याद

अब तुमको आयगी नानी याद

बनते ही मुर्गा हो जाएगा पाठ याद

कैसा अपनापन

कैसी अजब माया कैसा अजब खेल निराला

दोस्त है मगर गिनती दुश्मनों में ज्यादा है

प्यार है मगर नफरत उससे भी ज्यादा है

चाहे किसी ओर को ये भी उनको मंजूर नही

दूर एक दूजे से रहे ये भी मंजूर नही

ये कैसा प्यार है कैसा अपनापन है

हमको मालूम नही

Tuesday, November 3, 2009

भाषा

लगता है भाषा प्यार की समझ नही आती

हर छोटी छोटीबातों पे तलवार निकल आती है

ना जुबान पे कोई लगाम होती है

लड़ने को आतुर भोये तन जाती है

कड़वाहट वो भी नीम चडे करेले सी हो जो

दोस्तों को भी दुश्मन बना देती है

फिर भाषा प्यार की समझ नही आती है

गुलदस्ता

इस सुंदर गुलिस्ता में गुलदस्ता एक सजाया है

प्यार की खुशबू इसे महकाया है

काँटो को निकाल गुलाब से इसे बनाया है

गुलदस्ते की तरह खिलता रहे चमन

पैगाम ये दिलो में महकाया है

Monday, November 2, 2009

पीय की राह

पहन के हाथो में कंगन

पैरो में पायल , कानो में झुमका

लगा के माथे पे बिंदिया

बालो में गजरा ,हाथो में मेहंदी

पिया निहार रही साजन की राह

गाके मधुर मिलन राग बुला रही

साजन जी जल्दी घर आना

संग तेरे है हमको जाना

कर के सोलह श्रृंगार

कर रही हु तेरा ही इन्तजार

अब ना देर लगाओ

चंदा की चाँदनी ढल जावे

इस से पहले तुम आ जाओ

आ जाओ आ जाओ

सजन अब तो आ जाओ

नफरत

कोशिश बहुत की पर तुझ से नफरत ना कर पाया

दिल को बहुत समझाया पर इसे मना ना पाया

फासला ज्यादा था दूर जाना जरुरी था

पर लोट के तेरे पास ही आना होगा ऐ मालूम ना था

Sunday, November 1, 2009

इन्तजार

इन्तजार उनका का किया

रात ढलने को आई

शमा बुझने को आई

पर कोई पैगाम ना लायी

बैठे रहे जिनके इन्तजार में

बेमुरबत वो ना आई

ऐसी भी क्या बेरुखी दिखलाई

की एक पल के लिए उनको

हमारी याद भी ना आई