POEMS BY MANOJ KAYAL
तरकश के तीर खत्म होने आए
शिकार एक हाथ ना लगा
वन वन भटका
निशाना एक ना लगा
धनुष की टंकार
हाथियों की हुंकार
नगाडो की आवाज़
शिकार एक ना निकाल पाए
आवाज़ को लक्ष्य कर जो तीर चलाया
वो निशाने पे जा लगा
शिकार के सीने को बेंध प्राण हर गया
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