लुट गई अस्मत बिक गया शरीर
जिस्म की मंडी में
फिर उत्तर गई एक अबला की तस्वीर
नरक के दलदल में
फंस गई एक ओर मजबूर जिंदगानी
पर कटे परिंदे सी तडपड़ाये
पर सौदागरों के चंगुल से निकल ना पाये
गुजर जिन्दगी ऐसे ही जानी है
किसी के तन तो किसी की दौलत की हवास मिटानी है
इस काल कोठरी के दायरे में ही दुनिया सिमट जानी है
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