POEMS BY MANOJ KAYAL
मिथ्या कुछ है नही
पर सच भी तो कुछ नही
अलग अलग राग
अलग अलग अनुराग
कही रुंदन भरी शाम तो
कही मुस्कराहट लिए प्रभात
गुजर जाती है जिंदगानी
रह जाती है बात
समझ आती नही ये बात
कुदरत की पहेली का
हल नही किसीके पास
कुछ कुछ मिथ्या
कुछ कुछ सत्या
यही है जीवन सार
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