जाम छलकाते रहे रात भर
गमों में डूबे रहे दिन भर
पर दुखो को ना भुला पाये
जितना भुलाना चाहा
उतने घाव हरे होते गए
लगने लगा साकी ने भी नाता तोड़ लिया
जीने की ललक भी अब ओर ना रही
परेशानी में जाम को होटों से लगा लिया
ओर लडखडाते कदमो से अनजानी राह को निकल पड़े
No comments:
Post a Comment