जिन्दगी के चक्रभ्यु में ऐसे फंसे
ख़ुद से ख़ुद को रूबरू ना करा पाए
वक्त पंख लगा उड़ता चला गया
यादो को समेट भी ना पाए
जिस जिन्दगी की तलाश में भटके
उसे अपने में तलाश भी ना पाए
जिन्दगी के असली दर्पण को समझ ना पाए
अपने ही अक्स को पहचान ना पाए
इस चक्रभ्यु को समझ ना पाए
जी के भी जी ना पाए
No comments:
Post a Comment