POEMS BY MANOJ KAYAL
जिन्दगी चलते गए
कदमो के निशा बनते गए
आहिस्ता आहिस्ता कारवा गुजरता गया
निशा बदलते गए
मंजिल गुजरती गई
अहसास ही हो ना पाया
पलट के देखा तो ख़ुद को
अकेले खड़ा पाया
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