POEMS BY MANOJ KAYAL
कर के सोलह श्रृंगार
प्रियतमा चली साजन के द्वार
मन में रंग बरसे हजार
मिलन की बेला आई है आज
नयनो में सपने लिए अपार
मिलन को व्याकुल है मन आज
बड़े दिनों बाद खुसिया छाई अपार
साजन की बाहों को मन ऐ तरसे बार बार
गौरी चली पीये के द्वार
No comments:
Post a Comment