गाथा है स्नेह भरी
पिता पुत्र की लगाव भरी
हाथ थामे चले जब
हर मुस्किल आसान बनी तब
पिता ने संघर्ष की प्रेरणा का मंत्र दिया जब
सफलता मिली चहु और तब
पुत्र सर पे रखा जो हाथ
पूर्ण हुई अभिलाषा
पूर्ण हुए सब काज
छोड़ पुत्र को आर्शीवाद के संग
पिता पधार गए इश्वर संग
पुत्र करे रुंदन पुकार
एक बार चले आओ मेरे पिता आप
सुन के करुन पुकार
पिता कहे जीना सीखो मेरे बिना आप
तुझे छोड़ कहा जाऊंगा मेरे लाल
तेरी यादो मैं रहूँगा मेरे लाल
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