आसमान में चाँद निकल रहा है
मेरा चाँद खुद को बदरी में छिपा रहा है
शशि की आभा से गगन यूँ चमक रहा
जैसे चाँदनी रात हो
जुल्फों की लटोंमें छिपा मेरा चाँद
अमावस्या की निशा लग रहा है
हुस्न मोहब्बत रजनीश अपने पूरे सबब पर है
मेरे हुस्न की मल्लिका मुझसे नाराज है
क्योंकि चाँद में भी दाग है
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