Thursday, July 30, 2009

अंहकार

जलजला ऐसा आया

ह़र ओर विनाश लीला धधक उठी

कहीं ज्वालमुखी तो कहीं बाढ़

की भिभिशका का मंजर छा गया

प्रकृति का रौद्र रूप देख रूह भी काँप उठी

मानव ने अहंकार बस सृष्टि को नष्ट करने की ठान ली

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