जाम जब छलकते है
आंसू बन बहते है
दिलों के अरमान जब टूटते है
मधुशाला के द्वार खुलते है
आंसुओ में गमों को छलकाने की बजाय
मधुशाला में जाम छलकाते है
गमों की दरिया में डूब
गमों की बांहों में खुद को भूल जाते है
दर्द को जीने का नशा जान
मदिरा के नशे में काल को गले लगाते है
सुन्दर नयन छलकाने फिर गम
हर दरिया किनारा तोड़
सैलाब बन छलक पड़ते है
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