Monday, July 27, 2009

जाम

जाम जब छलकते है

आंसू बन बहते है

दिलों के अरमान जब टूटते है

मधुशाला के द्वार खुलते है

आंसुओ में गमों को छलकाने की बजाय

मधुशाला में जाम छलकाते है

गमों की दरिया में डूब

गमों की बांहों में खुद को भूल जाते है

दर्द को जीने का नशा जान

मदिरा के नशे में काल को गले लगाते है

सुन्दर नयन छलकाने फिर गम

हर दरिया किनारा तोड़

सैलाब बन छलक पड़ते है

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