तेरे संग हमने प्रीत की डोर लगाई है
काट सके ना कोय
उस रिश्ते की डोर बनायी है
संग संग उड़ चलू तेरे
मेरे मन की नित यही कहानी है
तेरे संग हमने प्रीत की डोर लगाई है
बंधन की पेंच ऐसी लगाई है
सात जन्मो तक साथ निभानी है
जिधर तेरी बयार चले
उसी राह दिल की पतंग उडानी है
तेरे संग हमने प्रीत की डोर लगाई है
संयोग कहो या वरदान
मेरे दिल पर तेरी दीवानगी छाई है
साथ फेरों के साथ तेरे को जीवन अर्धांगीनी बनानी है
तेरे संग हमने प्रीत की डोर लगाई है
Congratulations!
ReplyDeleteVery beautiful poem. Please keep up the good work and give us continuous dosage of beautiful poems.
Rajendra "Raj"