Wednesday, November 13, 2024

सम्मोहन

सम्मोहन तेरे दिल के तिल ने नजरों पर ऐसा फेरा l

दर्पण भी मेरा अकेले में खुद से शर्माने लगा ll



जादुई संचारी ने आहिस्ता आहिस्ता लिखी जो ग़ज़ल l

प्रतिबिंब उसकी बन गयी मेरे आरज़ू की धूप सहर ll



साक्षी किरणें ढलती सांध्य लालिमा घूंघट ढाल l

सुकून चुरा ले गयी पलकों अब्रों शमशीर नाल ll



नज़र उतारी नजरों की बना इसे ताबीज बाती साय l

मुक्तक खुल संवर गयी इन बंद पिंजर गलियारों माय ll



उलझी थी जो पाती बिन अक्षरों पहेली रंगीन धागों की l

महका गयी गुल बिन हीना ही इन कजरी हाथों की ll

Tuesday, October 15, 2024

पहेली

किंवदन्ती पहेलियाँ उस काफिर के दस्तखतों सी l

ख़त पैगाम कोई लुभा रही दस्तावेजों ताल्लुक़ सी ll


अख्तियार किया था बसेरा परिंदों ने बिन दस्तकों की l

इजाजत ढूँढ रही धुन उस धुन्ध बिसर जाने की ll


शून्य सी अधीर भूल भूलैया पगडण्डियों तालों की l

घूंघट आँचल ओट छुपा गयी लालिमा काजल की ll


कशिश कशमकश उधेड़बुन नयन इन बातों की l

नज़र डोरी पिरो रही अश्वगंधा वेणी साज़ों की ll


मोहलत ना थी समंदर को ठहर रुक जाने की l

रूख अकारथ बदल गया मौन कंपकंपाती साँसों की ll


किंवदन्ती पहेलियाँ उस काफिर के दस्तखतों सी l

ख़त पैगाम कोई लुभा रही दस्तावेजों ताल्लुक़ सी ll

Saturday, September 14, 2024

अश्रुधार

मुनादी थी बहुरूपिये अफवाहों अरण्य आग की l


आतिशबाजी सी जलती बुझती खुशफहमीयाँ बीमार की ll


क़ुर्बत द्वंद शील मुद्रा मंशें मंसूबे जज्बातों लहरें पैगाम की l


रूमानियत रुबाई कयास मुरीद वाकिफ इस कायनात की ll


कशमकश सुरूर तार्किक मिथ्या शुमार वहम ला इलाज की l


पन्ने अतीत के पलटती स्याह उजड़ी रातें मूसलाधार बरसात की ll


खुमार बदरंगी चादर अधूरी खामोश ख्वाबों मुलाकातों की l


साँझी सांची चाँदनी फ़िलहाल अर्ध चाँद इस उधार बेकरारी की ll


अक्षरों के मलाल अक्सर सगल संजीदा क्षितिज नैया पार की l


अफवाहों फेहरिस्त रंग बदल गयी बारिश इन टुटे अश्रुधार की ll

Monday, September 2, 2024

अल्पविराम

अश्वमेघ सा विचरण करता यह उच्छृंखल मन मयूर दर्पण नाचे मेघों साथ l

खोल जटा रुद्र हारा सा रूप त्रिनेत्र मल्हार सप्तरंगी बाण धुनों रंग जमाय ll


मृगतृष्णा परछाईं खटास की मीठी रूह सी चादर लड़कपन ओढ़ इतराय l

विभोर सागर मंथन बाँध अंजलि सी तरुणी लिखती खत बादलों को जाय ll


यादों अल्पविराम लम्हों ख्वाहिशों रक्स पूर्णविराम अंकुश रस बरसाय l

अनुमोद स्वरांजली स्याही कहानी अक्स कागज पहेली बन मुस्काय ll


पिंजर शून्य अर्पण हिम शिखर बहका मन काशी गंगा बहता जाय l

मेरु नीर दरख्तों सुगंध चाँदनी रात अकेली सी आँचल छुप शरमाय ll


आकर्षण दृष्टि खुली डोरी मन किताबों की स्वप्निल कहानी कहती जाय l

कलाई पुराने धागों सदृश्य बँधी अपराजिता कड़ी मन्नतों खुलती जाय ll


यादों अल्पविराम लम्हों ख्वाहिशों रक्स पूर्णविराम अंकुश रस बरसाय l

अनुमोद स्वरांजली स्याही कहानी अक्स कागज पहेली बन मुस्काय ll

Sunday, August 11, 2024

दो अक्षर

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

दर्द टीसन में भी जैसे मुस्का रही इसके साये का यह अंदाज ll



घरौंदा परिंदों का उजड़ था इसके जिस सूने आसमाँ सिरहन ताल l

नज़र किसी को आया ना इसके बिखरे मंलग नूर का महताब ll



बेहया नींद परायी गुमशुदा हो गयी खुद से खुद की पहचान l

शतरंज बिसात लूट ओझल हो गयी इसकी रूह अस्मत पुकार ll



ग्रहण डस गया चाँद के इस सितारों का पैबंद लगा संसार l

पृथक हो भटक गया मेरूदंड इसके सारे आकाशी गंगा मार्ग ll



सिमट रह गया सिर्फ दो अक्षरों से इसके वज़ूद का अहसास l

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l