RAAGDEVRAN
POEMS BY MANOJ KAYAL
Saturday, May 4, 2024
रूहानी साँझ
Sunday, April 7, 2024
अंजुमन
इस अंजुमन ताबीर की थी जिन ख्यालों की l
अक्सर उन बैरंग खतों ढ़ल जाती वस्ल रातों की ll
मुख़्तसर थी इनायतें इनके जिन ख्वाबों की l
रूबरू तस्वीर एक हुई थी उन फसानों की ll
साँझ की तस्दीक बैठे रहते इसी के अंजुमन में l
मुलाकातें कभी यही उस महताब से तो होगी ll
जुनून था जिस रूमानियत रूह आरज़ू का l
बारिश नीर सुगंध रंग उसकी ही महकाती थी ll
कह उस बेनज़ीर को हबीबी पुकारी थी जब यादें ll
बंजारे चिलमन की रफीक बन गयी थी साँसे l
मिलाप था यह एक अनजानी सहर आलाप का l
सिलसिला आगाज था हमसफर अह्सास का ll
Monday, March 11, 2024
ll आलिजा ll
सारंगी तान श्यामवर्ण अपराजिता चंदन खुशबु l
कजरी गजरे सुरमई सुरमे गुत्थी नफासत माथे बिंदु ll
किवदंती पिया वैजयन्ती खन खनाती झांझर कंगन l
अकल्पित रूह रोम सँवर भँवर आह्लादित दामन ll
रूद्राक्ष ताबीज साँझ क्षितिज काया कामिनी l
विभोर साधना मन अनुरागी आँचल धुन ताल्लीन l
मन्नत कलाई धागे लकीरें चाँद दुआएं काफिर l
स्वरांजली सामंजस्य धरा कर्णफूलों कुमकुम कालीन ll
रैना सूत्र सौगातें सौगंध पानी रूप केश घटा कहानी l
साया माया बदरी जादू घूंघट घुँघरू साक्षी धूप सयानी ll
अग्नि शिखा आभा मंडल बृज सखी बोल सुहानी l
करतल ध्वनि सजली ध्यान बाँसुरी मीठी मीठी धानी ll
Saturday, March 2, 2024
दूरियाँ
दूरियाँ थी मेरे रहनुमा राहों ख्यालातों किनारों में l
गौण मौन खड़े थे इस पथ सारे जज्बात मुहानों पे ll
डूब गयी थी कमसिन काया अलबेली मोज धाराओं में l
निकाह कामिनी बाँधी जिसे मन्नत पाक दिशा धागों ने ll
रुखसत अश्रु व्यथित रो ठहरे हुए नयनों परिभाषा में l
खोये पैगाम अंजुमन सागर बह चले जल तरंगों पे ll
गुलदस्ता मेहर मुरझा गया स्वप्निल अंकुरण से पहले l
अंतर्बोध ताज मीनारे ढहा बहा गया सूखे सैलाब तले ll
सौदा गुलमोहर किरदारों का टाँक गया पैबंद इसका l
फूल किताबों के बदरंग हो गए इन सलवटों के पीछे ll
Friday, February 2, 2024
सजा
अविरल सिसकियाँ अंतर्मन पहेली पदचापों की l
प्रश्नन चिन्ह पानी तरंगों मचलती मझधारो की ll
जिस्म सुनहरी झुर्रियां लिपटी रूह बिन बरसातों की l
वात्सल्य खामोश अनकहे खोये हुए शब्द बातों की ll
मसौदा लेखन अम्बर इस काफिर को आज़माने की l
चिनार दरख्तों संग निपजी वो सफर मुलाक़ातों की ll
आराधना रीत सूनी वेदना कोरे फागन रंग साधना की l
उजाड़ती मत असहमत गुलज़ार गलियां बारातों की ll
सब्र सदियों आईना गर्त उस इंतजार की l
खुशफहमी गलतफहमी इस नादानी की ll
कल्पना भँवर टूटा ना जब दिल लगाने की l
चाह थी उस चाँद की नजर बन जाने की ll
कैसे भूल जाऊँ हवा उस गली चौबारे की l
आदत हैं जिसको सिर्फ दिल लगाने की ll
रब ने दी थी मोहलत मोहब्बत में जी जाने की l
मयकशा छलका गया सजा इसे जी जाने की ll