Sunday, September 24, 2017

ख़ुमारी

नींद को जागते रहने की ख़ुमारी लग गयी

नयनों को जाने कौन सी बीमारी लग गयी

बोझिल पलकों को तारों संग

चाँद को निहारने की आदत लग गयी

फ़ितरत नींद की ऐसी बदल गयी

जाने इसे किसकी नज़र लग गयी

खुली शबनमी पलकों की सिफ़ारिश भी यूँही रह गयी

बिन करवटें ही आँखों में रात ढल गयी

नींद की मासूमियत तन्हाइयों में जाने कहा खो गयी

हर रात एक सदी सी

लम्बी दासताँ बन गयी

नींद को जागते रहने की ख़ुमारी लग गयी

ख़ुमारी लग गयी

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