जिन्दा लाशों का दरिया बन गया मेरा शहर
रूहों का यहाँ नहीं कोई हमसफ़र
बिक गयी मानों यहाँ हर एक आत्मा
तुच्छ विपासना हवस के आगे
मय्यत भी मानों दफ़न ऐसे हो गयी
अपनों के ही आँसुओ को जैसे तरस गयी
वैश्या बन गयी यहाँ हर एक चेतना
भूल ज़मीर को कोठे की दहलीज के आगे
मोहताज हो गयी राहों को अंतरात्मा
विलुप्त होते संस्कारों में कहीं
रंज इसका रहा नहीं किसीको भी यहाँ जरा
बिन रूह जिंदगी का कोई मौल नहीं
बिन रूह जिंदगी का कोई मौल नहीं
रूहों का यहाँ नहीं कोई हमसफ़र
बिक गयी मानों यहाँ हर एक आत्मा
तुच्छ विपासना हवस के आगे
मय्यत भी मानों दफ़न ऐसे हो गयी
अपनों के ही आँसुओ को जैसे तरस गयी
वैश्या बन गयी यहाँ हर एक चेतना
भूल ज़मीर को कोठे की दहलीज के आगे
मोहताज हो गयी राहों को अंतरात्मा
विलुप्त होते संस्कारों में कहीं
रंज इसका रहा नहीं किसीको भी यहाँ जरा
बिन रूह जिंदगी का कोई मौल नहीं
बिन रूह जिंदगी का कोई मौल नहीं
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